प्रभु श्रीराम ने केवट को राम राज्य का प्रथम नागरिक बनाकर आदर्श स्थापित किया – दीदी मंदाकिनी
निंबाहेड़ा। मानस मर्मज्ञ एवं युग तुलसी राम किंकर जी की आध्यात्मिक शिष्या दीदी मंदाकिनी ने कहा कि त्रेता युग में प्रभु श्री राम ने अंतिम पंक्ति में खड़े केवट को राम राज्य का प्रथम नागरिक बनाकर तत्कालीन समय में सभी के प्रति प्रेम भाव का अनुठा संदेश दिया हैं। दीदी मंदाकिनी मंगलवार को श्रीराम कथा मंडप के व्यासपीठ से मानस के अयोध्या कांड की विस्तृत व्याख्या कर रही थी।
उन्होंने राजा दशरथ के वनवास की परिकल्पना के साथ श्रीराम को युवराज बनाने की गुरू वशिष्ठ से आज्ञा के साथ अयोध्या नगरी को नया युवराज देने का वर्णन करते हुए कहा कि ऐसे ही समय में दूसरों के सुख में दुख पैदा करने वाली मंथरा ने महाराणी कैकई की बुद्धि को भ्रमित कर भरत को युवराज एवं राम को चौदह वर्ष के वनवास का वर मांग लिया। उनकी यह मांग मंथरा की कुबुद्धि व कुसंग का परिचायक थी, जो द्वेष रूपी मंथरा से प्रभावित हो गई थी। मॉ कैकई के दो वरदान की बात सुनकर भगवान राम ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि उनके लघु भ्राता भरत अयोध्या के राजा बनेंगे और वे वन गमन के दौरान राम राज्य की स्थापना करवाएंगे। उनके साथ भैय्या लक्ष्मण और किशोरी जी की सुमन के रथ पर गंगा तट के लिए प्रस्थान कर गए। श्रीराम को वनवास देने पर अयोध्या का सभी समाज उनके साथ गंगा तट पर पहुंचा, जहां से प्रभु की परिवर्तन यात्रा प्रारंभ हुई। दीदी मंदाकिनी ने बताया कि गंगा पार करने के लिए प्रभु ने केवट से नांव मांगी लेकिन पहचानने के बाद भी उसने नांव देने के लिए मना कर चरण प्रक्षालन के बाद ही नांव में बैठाने का आग्रह किया। कैवट ने बताया कि आपके चरणों की रज से शीला रूप में नारी अहिल्या रूप में परिवर्तित हो गई, जबकि उसकी नांव तो काठ की हैं। इसलिए चरण प्रक्षालन के बाद ही गंगा पार कराएंगे,तब प्रभु ने सहृदयता के साथ केवट को अपना मित्र बनाकर चरण प्रक्षालन की अनुमति दे दी। ऐसे में केवट ने भी उत्तराई नहीं लेने का वचन दिया। इस दौरान चैतन्य गंगा ने भी प्रभु को पहचान कर केवट के भाग्य की प्रशंसा की, तब केवट ने कथौटे में प्रभु के चरण प्रक्षालन कर उन्हें गंगा पार करा दिया। इस दौरान किशोरी जी द्वारा मुद्रिका देने को भी स्वीकार नहीं करते हुए कहा कि आपके सानिध्य से मेरे सब दोष और दुखों का निवारण हो गया हैं। इसलिए वनवास से लौटने पर आपसे मैं उत्तराई स्वीकार करूंगा। केवट ने कहा कि वनवास के दौरान अयोध्यावासियों के दुख के बीच अटपटे बेन से फंसाकर मैंने आपका दुख दूर किया, तो मेरे भी सारे दुख दूर हो गए। वहां से प्रभु चित्रकूट पहुंच गए, जहां से ऋषि मूनियों के साथ रहते हुए रावण द्वारा छद्म रूप में सीता का हरण का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने रावण द्वारा जटायू को घायल करने का प्रसंग सुनाया, जब राम लक्ष्मण वन में आगे बढ़े तो घायल अवस्था में जटायू को देखकर गिद्दराज को पिता की पदवी देते हुए उनसे सीता हरण की जानकारी ली। इस दौरान जटायू का निधन हो जाने पर पिता मानकर उनका अंतिम संस्कार किया। ऐसा सौभाग्य कई ऋषि मूनियों को कड़ी तपस्या के बाद भी प्राप्त नहीं हो पाता हैं। यहां से प्रभु जब सबरी आश्रम की ओर गए तो उन्होंने भील जाति की सबर कन्या सबरी को उनके गुरू के आशीर्वाद के अनुरूप माता के रूप में सम्मान देकर समाज के पिछड़े व अंतिम व्यक्ति के साथ जटायू जैसे गिद्दराज को भी पिता जैसा सम्मान देकर समाज को आदर्श राम राज्य की प्रेरणा दी हैं। यहां माता सबरी सैकडों वर्षों से प्रभु के आगमन की प्रतिक्षा में नित पुष्पों से मार्ग सजाकर बाट जोहती थी और आखिर उनकी प्रतिक्षा पूर्ण हुई जब स्वयं प्रभु राम और लक्ष्मण उनके आश्रम में पहुंच गए।
प्राकट्योत्सव एवं दिव्य दर्शन 19 जून को
20 वें कल्याण महाकुंभ के अंतिम दिवस आषाढ़ कृष्ण अष्टमी गुरुवार यानि 19 जून को प्रात: साढ़े 8 बजे 51 कुण्डीय श्री राम यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ ही वेदपीठ की परंपरा अनुसार एकल परिवार को पौराणिक शिक्षा देने एवं परिवारों में बेहतर समन्वय बनाने के उद्देश्य से प्रात: 9 बजे सामूहिक मातृपितृ पूजन, प्रात: सवा 11 बजे मंदिर पर ध्वजारोहण तथा दोपहर सवा 12 बजे भव्य शंखनाद के साथ ठाकुरजी के दिव्य दर्शन दोपहर 12.32 बजे होंगे। जिसकी वर्ष भर प्रतिक्षा करने वाले हजारों कल्याण भक्त भागीदारी निभाते हुए स्वयं को धन्य करेंगे।